hindisamay head


अ+ अ-

कविता

मोबाइल पर उस लड़की की सुबह

वीरेन डंगवाल


सुबह-सवेरे
मुँह भी मैला
फिर भी बोले
चली जा रही
वह लड़की मोबाइल पर
रह-रह
चिहुँक-चिहुँक जाती है

कुछ नई-नई-सी विद्या पढ़ने को
दूर शहर से आकर रहने वाली
लड़कियों के लिए
एक घर में बने निजी छात्रावास की बालकनी है यह
नीचे सड़क पर
घर वापस लौट रहे भोर के बूढ़े अधेड़ सैलानी

परिंदे अपनी कारोबारी उड़ानों पर जा चुके

सत्र शुरू हो चुका
बादलों-भरी सुबह है ठंडी-ठंडी
ताजा चेहरों वाले बच्‍चे निकल चले स्‍कूलों को
उनकी गहमागहमी उनके रुदन-हास से
फिर से प्रमुदित-स्‍फूर्त हुए वे शहरी बंदर और कुत्‍ते
छुट्टी भर थे जो अलसाए
मार कुदक्‍का लंबी टाँगों वाली

हरी-हरी घासाहारिन तक ने
उन ही का अभिनंदन किया
इस सबसे बेखबर किंतु वह
उद्विग्‍न हाव-भाव बोले जाती है

कोई बात जरूरी होगी अथवा
बात जरूरी नहीं भी हो सकती है

 


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में वीरेन डंगवाल की रचनाएँ